Friday, January 13, 2012

सफर



सफर बहुत बार करता मगर याद रहता नहीं
कभी जमा लिया था कब्जा इंजीनियरिंग के छात्रों ने पूरी बोगी पर 
गोरखनाथ के शिष्यों संग दरवाज़े पर उस रात 
जलते बुझते  तारों और हवा के झोंकों के साथ सफर करना याद रह जाता है।
शहर जिन संकल्पों के साथ आता है नौजवान
बस तारों का टिमटिमाने में अग्नि की लौ मान कर दोहराना होता है उसे
वे वायदे वहीं रह गए और कभी लाईटर जलाकर हमने अग्नि के सात फेरे भी ले लिए।

दादी से इतनी बातें करता था कि उनके जाने का दुख नहीं था 
गरीबी में उनकी तस्वीर डायरी बन जाया करती 
अपने होठों का दिया तुम्हारी आंखों के सामने उतार देता था। 
इक वक्त वो भी आया जब सिरहाने उनकी तस्वीर रख सिगरेट सुलगाने लगा। 

सफर बहुत बार करता मगर याद रहता नहीं
बस अब किसी फलां सफर को याद रख सफर करता हूं।

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