ध्वनि तरंगों पर कसे काले मढ़े चमरे के छिद्र से आती आवाजें... पहचाने हुए स्टेशनों पर चुनिन्दा गीतों की तलाश में अनजान जगहों पर टियून होते किसी चीनी स्टेशन से गुज़रते हुए "हूं, होये मून हिन् चाएं नो पी नी चोयो सुनते"... तत्क्षण किसी दूसरे स्टेशन के रडार क्षेत्र में आते हल्की की पतली धुन, बैंड पर फौजियों के बूटों की आवाजें... बीच बीच में टूटती हुई.. बैकग्राउंड से चिढ़ते किसी अवरोध बनता कोई शिकायत... एक दूसरे पे चढ़ता कोई स्वर... रात की स्तब्धता और तन्द्रा भंग करते टुकड़े... सबदे हुए कलेजे पर मरहम बनती कई आवाज़... बहुत से बैकग्राउंड स्कोर... एक से दूसरे में मिक्स होती आवाजें... आवाजों का चेहरे... छायागीत.
जितना धीमा उतना कर्णप्रिय...
रेडियो सीलोन...!
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