Tuesday, January 10, 2012

आई ड्रोप्स



लगभग अंधेरे के आलोक में चिकने, हल्के तैलीय, जूते के पॉलिश वाला ढ़क्कन सा हल्का, अभी-अभी खुल कर अपने वृत्ताकार परिधि से सरका हुआ। अंदर अब-डब करता दिन के तेज़ धूप में रख दिए गए गीले, महके, आयोडेक्स सी - आंखें। हल्की-हल्की दाएं-बांए डोलती, किसी हीरे की दूकान में छोटे लाल मखमली बटुए में रखे कंचे से, मर्तबान में उड़ेले हरे आंवले से, ट्रेन की रिजर्वेशन बोगी में आधी रात लेट हुए मद्धम मद्धम हिलते शरीर जैसे- आँखें


दो बूंद आई ड्रोप्स डालो तो वापस गाल की दीवार पर फेंक देती किंतु सिर्फ अपने स्तर पर खूब रोना जानती । गहरे हलके गीलेपन में डूबी लालिमा, डोरे के पास रुका तरल, एक याचक सी - आँखें.

No comments:

Post a Comment