Saturday, March 10, 2012

चॉक राग


सुबह के दस बजे रहे हैं. बाहर बारिश है. एक छात्र आधा भीगा हुआ कोचिंग के कैम्पस में सायकिल को पिछले स्टैंड पर बड़े जतन से चढ़ाता है. शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले हैं. उसी में औंधा चश्मा लेटा है... जिसकी एक डंडी उसके छाती के बालों में उतरे हैं...  अन्दर बीजगणित पढ़ाने वाले मास्टर की कक्षा चल रही है... जिनका कोड M2R है... क्लास में सन्नाटा पसरा है. बारिश कम है और अँधेरा ज्यादा...

मास्टर बोर्ड पर एक सवाल का हल लिख रहा है. चॉक तेज़ी से चल रही है.. लगता है मास्टर के हाथ से छूट जायेगी.... खट खट की आवाज़ के साथ एक चॉक का अपने हर अंतिम लकीर पर मिमियाहट की आवाज़ आ रही है. पूरे कमरे में चॉक राग ही बज रहा है. बाहर से आया हुआ छात्र किनारे वाले बेंच पर बैठता है... कमरे में हल्का अँधेरा है... बाहर से आने पर शुरू के कुछ एक मिनट उसे साफ़ नज़र नहीं आते... उस दौरान वह सिर्फ चॉक का शोर सुनता है...फिर अक्षर हलके हलके उगते हैं... लेकिन चॉक के बोर्ड पर बजने की वो आवाज़ गहराती जाती है... 

ऐसा लगता है उसके दिमाग को घर के पिछवाड़े वाले कारखाने में पलट का ठोका जा रहा है... ओह नहीं! ऐसा नहीं है वह अपना माथा पकड़ लेता है... ऊपर पंखा दो की स्पीड पर चल रहा है... चॉक राग बज रहा है, एकाग्रता में शोर है.... शोर अपने में एकाग्र है... बोर्ड पर पड़ते चॉक की आवाज़ एक तंग मकान की सीढ़ी से जल्दबाजी में उतरते सैंडल की आवाज़ में डीजोल्व हो जाती है... 

मानव मन, संवेदी तंतु, याद पैठी हुई, गहरे धंसी हुई... 

फिल्म कौन था, ये जो ऊपर कहा गया है या जो इसके आगे शुरू होगा ? 

1 comment:

  1. तुम इस ब्लॉग पर बहुत सारा कन्फ्यूजन रचते हो! मेरा भी मन करने लगा कि तुम्हारा दिमाग ठोक पीट के सही ही कर दें :)

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