Friday, March 16, 2012

मुक्ति


 




हम दिखाते हैं कि एक अधेड़ अँधा आदमी अपने गाँव के घर पर आया हुआ है. कई बरस बाद वो अपने घर पर वो लौटा है. मिटटी का घर जो बहुत पुराना तो है लेकिन जिसकी देखभाल पडोसी द्वारा की जाती है... दीवार अपने तरह से नयी लग रही है... एक ख़ास किस्म की गंध आती है.. इसमें अतीत की यादें तो हैं ही जो उस आदमी को परेशान कर रही हैं... अपने घर की दीवारों को टटोलते हुए वो अपने ही भीतर उतर रहा है... कुछ भूला हुआ, धुंधलाती हुई याद... कुछ याद घर से बाहर की भी .... द्वार की भी, भूसे घर में बैठ कर अचार खाते हुए भी... लगभग हफ्ते भर पहले ही उसपर गीली मिटटी का लेप फिर से चढ़ा है...

हम दिखाते हैं कि वो आदमी ज़मीन पर पड़ा हुआ है फूट फूट कर रोने के बाद कोहनी की टेक लगा कर थोडा उठता है फिर एक हाथ से दीवार का सहारा ले दूसरा अपने घुटनों पर रख कर धीरे धीरे उठता है... उसकी उँगलियाँ एक बेहद संवेदी अंग है... जो उसकी ज्ञानेन्द्रियों का सा काम करती है पहले वो अपने तर्जनी से कुछ छूता है, फिर बारी बारी मध्यमा, अनामिका और कनिष्का का इस्तेमाल करता है और जब ये चार उँगलियाँ उसके दिमाग में कोई एक निश्चित खाका खींच देती है तो वो अंगूठे से आखिरी रूप में उसे मुकम्मल तौर पर टटोलता है...अंगूठे का इस्तेमाल वो उन अनदेखे चीजों पर हस्ताक्षर करने के लिए करता है ..  जैसे उस आकर को उसने अब समझ लिया है.

वो कमर तक सीधा खड़ा हो चूका होता है की उसकी बांकी उंगलियाँ दीवार में उभरे एक ताखे से टकराती है, जो थोडा ही उभरा है.. आदतन चारो उँगलियों से वो उसे टटोलने के बाद उस पर अंगूठा रखता है... उसे याद आता है कि शाम ढले यहाँ  एक  डिबिया जला करती थी... सहसा सारी यादें ढह जाती है और घर कि दीवार उसे कोई नारी देह सा मुलायम लगता है, उसमें से एक मादा गंध आती है और ताखा उस देह को टटोलने में अप्रत्याशित रूप से स्तन में बदल जाता है... 

अधेड़ उम्र का आदमी बच्चे में तब्दील हो जाता है, घर की पुरानी दीवार बूढी माँ में भूरा ताखा ढीले स्तन में...

...और अब बच्चे का अंगूठा उस पर है.

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