Monday, September 19, 2011

सार


जैसे आग के उस पार की दुनिया थी...।

लहक में गर्म होने के बाद पाक, बरसों पहले गिलावे पर खड़ी की दीवार जो अब हिलती है। जो किसी तरह खड़ा है उसके क्षणिक होने का आभाष लेकिन उसमें लगी मिट्टी हमेशा से अमर...।

खुशकिस्मत हम कि अगर वो बोल सकती तो हमारा एक दुश्मन और होता और जिस रूप में हम उसे सुन रहें हैं वो अपने मूड के हिसाब से सुनते हैं कहां याद रहता है कि गमले में रखी मिट्टी है सबसे अनमोल।

इन दिनों की मिलावट ना हो तो गमला भी आखिरकार मिट्टी ही है और हम भी। मिट्टी आखिरकार मिट्टी ही रही और आखिरकार हम भी हुए नहीं हैं तो हो जाएंगे लेकिन इस बीच क्या हो गए, हो रहे हैं ?

जब जो सुनना था नहीं सुनने पर खुश हुए, होते जा रहे नस्ल।

एक बरगद है, गांव में, ज़हन में। उसकी एक-आध किलोमीटर बाद भी जड़ सतह पर दिखती है। तुम मानो कि वो जड़ की कंघी करती है, मां की गोद में है या फिर अपनी प्रेमिका के जुल्फों की जद में उंगलियां फंसाए बैठा है।


1 comment:

  1. कहां याद रहता है कि गमले में रखी मिट्टी है सबसे अनमोल। ये थ्री डी चश्मा कहाँ से मिलेगा...????

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