पूर्णतः श्वेत रौशनी में मगर शरद चांदनी जैसी तो नहीं एक आधी पानी की एक आधी बोतल मेट्रो खुलते, बंद होते दरवाज़े पर अचानक से गिर पड़ती है। बोतल के अंदर हलचल होती है। अंदर का पानी का जड़ता टूटता है और अपने बंद घेरे वाली दीवार में ही अधिकतम फैलाव के साथ पानी की सारी सतहें टूट जाती हैं। प्रत्येक बूंद फिर से प्रस्फुटित होता है। ब्रहमाण्ड से झरती एक अबूझ प्रतिबिंब जब सारी सृष्टि रंग बिरंगी होकर प्रतिबिंबित हो उठती हैं। हर एक बूंद में हज़ारों आईने, विभिन्न कोणों से बोतल के ऊपरी हिस्से पर पड़ता प्रकाश और अंतर जैसे श्वेत बर्फ की पतली, पारदर्शी सिल्ली टूट अपने शरीर पर पड़ते छाया को परावर्तित कर रहे हों। जैसे आकाशगंगा के कई उल्का पिंडो में विस्फोट, रात ढले, ऊंचे लैम्पपोस्ट के पीछे से थमती बारिश की थाह लेने में पलकों पर अति सूक्ष्म झिस्सी का एहसास...!
Crystal clear ! Lens of eyes !!
ReplyDeleteपानी की आधी बोतल में सिमटी सम्पूर्ण सृष्टि... बेहद ख़ूबसूरत ! लगा जैसे डिसकवरी चैनल पर "टाइम वार्प" सिरीज़ देख रहे हों...
http://www.youtube.com/watch?v=VoQ0DQpwwHU
P.S. : आँखों में ज़ूम लेंस लगा के घूमते हो क्या ? :):)
http://www.youtube.com/watch?v=4LJxwOs2yAQ
ReplyDeletesahi kaha richa ne, आँखों में ज़ूम लेंस लगा के घूमते हो क्या ladke ????
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